
ज़िंदगी के शुरुआती सालों में हम बहुत कुछ सह लेते हैं।
हमें लगता है कि हर रिश्ते को बचाना ज़रूरी है, हर बहस का जवाब देना चाहिए, और हर इंसान को खुश रखना हमारी जिम्मेदारी है।
उस समय हम यह नहीं समझ पाते कि खुद को थकाते-थकाते हम कितने खाली हो जाते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, अनुभव हमारे भीतर बैठने लगता है, और उस अनुभव के साथ एक नई समझ पैदा होती है।
एक समय आता है जब शांति किसी विलासिता की चीज़ नहीं रहती, बल्कि हमारी बुनियादी ज़रूरत बन जाती है।
अगर भीतर तूफान कम होते हैं, तो बाहर के तूफान खुद ही अपना रास्ता बदल लेते हैं
परिपक्वता का पहला संकेत यही है कि हम बेकार की बहसों से दूर होने लगते हैं।
पहले जहाँ हर बात हमें चोट पहुँचाती थी, वहीं अब हम सहजता से कह पाते हैं कि “यह मेरे मानसिक स्वास्थ्य के लायक नहीं है।”
हम सीखते हैं कि हर लड़ाई लड़ने लायक नहीं होती, और हर रिश्ते को पकड़कर रखना ज़रूरी नहीं होता।
जब सम्मान कम होता है, दूरी बढ़ाना ही समझदारी होती है।
यह निर्णय आपको कठोर नहीं बनाता, बल्कि आपकी आत्मा को सुरक्षित रखने की क्षमता देता है।
ड्रामा जीवन से फिसलने लगता है और शांति भीतर टिकने लगती है
जब मन में समझ बैठ जाती है, तब बाहरी शोर अपने-आप कम हो जाता है।
वे बातें, जो पहले हमें घंटों परेशान करती थीं, अब हम पर असर नहीं डालतीं। हमें एहसास होने लगता है कि:
किसी का रूखा व्यवहार हमारी गलती नहीं है
किसी का गुस्सा हमारा बोझ नहीं है
किसी का ड्रामा हमारी ऊर्जा के लायक नहीं है
धीरे-धीरे आप महसूस करने लगते हैं कि शांति के लिए चीज़ों को सरल बनाना जरूरी है।
और यह सरलता एक खूबसूरत आदत में बदल जाती है।
सबसे खूबसूरत बदलाव यह है कि आपकी संगत बदलने लगती है
जब आप भीतर बदलते हैं, तो आपके आसपास का दायरा भी बदलता है।
अब आप उन्हीं लोगों को जगह देते हैं जो:
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आपकी उपस्थिति का सम्मान करें
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आपसे ईमानदारी से बात करें
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आपकी ऊर्जा को हल्का और सुंदर बनाएँ
अब आपको बड़े ग्रुप की ज़रूरत नहीं रहती। दो सच्चे लोग भी बहुत होते हैं, बशर्ते वे आपके मन को शांत रखें।
धीरे-धीरे आप समझते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य।
और यह समझ ही आपको उन लोगों से दूर कर देती है जो आपकी शांति के रास्ते में बाधा बनते हैं।
आपके भीतर एक नया व्यक्ति जन्म लेता है
यह व्यक्ति वही पुराना आप होता है, बस और अधिक समझदार, और अधिक संतुलित।
वह अब अपनी कीमत समझता है। वह जानता है कि उसकी ऊर्जा कहाँ लगानी है और कहाँ नहीं।
वह दूसरों को बदलने की कोशिश नहीं करता, बल्कि खुद को सुरक्षित रखने का चुनाव करता है।
और यही चुनाव उसे मजबूत बनाता है।
परिपक्वता का असली अर्थ यही है: अपनी आत्मा को वहीं ले जाना जहाँ वह हल्की महसूस करे
जीवन बहुत लंबा भी नहीं है और बहुत छोटा भी नहीं।
लेकिन इतना जरूर है कि इसे बेकार की जद्दोजहद में खो देना सबसे बड़ी भूल है।
जब हम शांति चुनते हैं, तब हम खुद को चुनते हैं।
और जब हम खुद को चुनते हैं, तभी हम सही मायनों में बड़े होते हैं, बुद्धिमान होते हैं, और जीवन को उतना ही सुंदर देखते हैं जितना वह भीतर से है।