
शहर की भीड़ में एक छोटी सी दुकान थी। रोज़ का काम चलता था, पर मालिक के मन में एक ख्वाहिश कई महीनों से घूम रही थी।
वह देख रहा था कि ग्राहक बढ़ रहे हैं, लोग पूछते ज्यादा हैं, पर स्टॉक कम होने की वजह से खरीदते कम हैं।
कई बार ऐसा होता कि कोई ग्राहक आता, सामान पसंद करता, पर दुकानदार मजबूर होकर कह देता, “स्टॉक खत्म है… दो दिन बाद लेना।”
दुकानदार सोचता था कि अगर थोड़ा लोन लेकर ज्यादा माल रख लिया जाए, तो बिक्री कहीं ज्यादा हो सकती है।
मन में उम्मीद थी कि दुकान आगे बढ़ेगी।
पर उतना ही डर था कि कहीं लोन फंस न जाए, ब्याज भारी न पड़ जाए।
उसके दिमाग में एक ही बात घूमती रहती थी:
“लोन लूँगा तो ब्याज देना पड़ेगा… और अगर व्यापार न बढ़ा तो?”
वह लोन लेना चाहता था, पर डर उसके कदम रोक देता था।
एक दिन दुकान पर एक बुजुर्ग ग्राहक आए। शांत चेहरे वाले, सादे कपड़े पहने हुए, मगर आँखों में अनुभव की चमक।
दुकानदार ने बातचीत में अपना डर जता दिया और कहा,
“दादा, सोच रहा हूँ कि स्टॉक बढ़ाने के लिए लोन ले लूँ, लेकिन डर लगता है। पता नहीं सही फैसले हैं या नहीं।”
बुजुर्ग मुस्कुराए और बोले:
“डर लोन से नहीं होना चाहिए। डर गलत लोन से होना चाहिए।
क्योंकि कर्ज दो तरह का होता है।
एक वह जो आदमी को उठाता है।
एक वह जो आदमी को डुबो देता है।”
दुकानदार ध्यान से सुनने लगा।
पहला कर्ज: सोने का कर्ज
बुजुर्ग बोले,
“सोने का कर्ज वह है जो आपके काम को बढ़ाता है।
जो आपकी जेब में पैसा वापस लाता है।
जिससे आपके व्यापार का पहिया तेज घूमता है।”
जैसे कि नया स्टॉक खरीदना
नई मशीन लेना
दुकान बढ़ाना
या ऐसा निवेश करना जो आय बढ़ाता है।
यह कर्ज बोझ नहीं, एक अवसर होता है।
यह कर्ज अपने आप ब्याज चुका देता है, क्योंकि वह कमाई लाता है।
दूसरा कर्ज: पत्थर का कर्ज
कुछ देर रुककर बुजुर्ग ने कहा:
“पत्थर का कर्ज वह है जो आदमी को नीचे धकेल देता है।
जो कमाता कुछ नहीं, और खर्चा बहुत करता है।”
जैसे दिखावे की पार्टी
गैर जरूरी चीज़ें
एक दिन चमकने के लिए साल भर की जेब खाली कर देना
या वह खर्च जो आपकी कमाई नहीं बढ़ाता।
पत्थर का कर्ज आदमी को धीरे-धीरे भीतर से थका देता है।
यह न पैसा लौटाता है, न मेहनत की क़ीमत समझता है।
एक फैसला जिसने पूरी जिंदगी बदल दी
दुकानदार ने उस रात बहुत सोचा।
वह अपने बिजनेस को जानता था।
उसे पता था कि मांग है, बस माल कम है।
अगले ही दिन उसने छोटा, संभलकर लिया हुआ लोन लिया।
जितना वह चुका सके, उतना ही।
ना ज्यादा, ना फालतू।
उस लोन से उसने बढ़िया स्टॉक खरीदा।
दुकान पहले से भरी हुई दिखने लगी।
ग्राहक आए, सामान लिया, और बिक्री तेज हो गई।
छह महीनों के भीतर इतना मुनाफा हो गया कि उसने लोन पूरा चुका दिया।
चुकाने के बाद भी हाथ में अच्छी-खासी पूँजी बची।
दुकान वही थी, शहर वही था, लोग वही थे
पर उसकी सोच बदल गई थी।
और कभी-कभी सोच बदलने से ही जिंदगी बदल जाती है।
सीख जो हर इंसान को जाननी चाहिए
कर्ज गलत नहीं होता।
गलत कर्ज गलत होता है।
सोने का कर्ज आपकी कमाई बढ़ाता है।
पत्थर का कर्ज आपकी कमाई खा जाता है।
हर इंसान को बस एक बात समझनी चाहिए
कि कर्ज आपके लिए काम कर रहा है
या आप कर्ज के लिए काम कर रहे हैं।
यदि कर्ज आय बढ़ाता है, बिजनेस आगे ले जाता है, जीवन स्थिर करता है
तो वह वरदान है।
यदि कर्ज बोझ बनता है, चिंता देता है, और जेब खाली करता है
तो वह संकट है।
कर्ज लेना समझदारी है, कर्ज देना अक्सर मूर्खता
लोन सही हो तो वह आपको पंख देता है।
गलत हो तो वह आपको पत्थर की तरह नीचे खींचता है।
और कर्ज देना
बहुत बार रिश्ते बिगाड़ देता है, भरोसा खत्म कर देता है
और कई बार पैसा तो जाता ही है, साथ में मन की शांति भी चली जाती है।
इसलिए जीवन का यह सिद्धांत याद रखें:
कर्ज लो, पर कर्ज मत दो।
और जब लो, तो ऐसा कर्ज लो जो आपकी दुनिया को रोशन करे
न कि अंधेरा बढ़ाए।